कह गया अलविदा
कह गया अलविदा
हाड़तोड़ मेहनत ने
बेढंग कर दी चाल
पर नहीं जुटा पाया
ढंग के वस्त्र ताउम्र
अपने और परिवार के
नहीं लगवा पाया पैबंद
अपने फटे कमीज पर
जिससे झांकते रहे
लू के नस्तर
शीतलहर के अस्त्र-शस्त्र
वो नहीं करा पाया
बीमार पत्नी का उपचार
नहीं दिला पाया
अपने बच्चों को तालीम
ताउम्र करता रहा
कड़ा परिश्रम
फिर भी रहा अभावग्रस्त
देता रहा दोष
अपने कर्मों को
नहीं ढूंढ पाया
अपनी परेशानियों के
वास्तविक कारण
इसी उहा-पोह में
एक दिन
कह गया अलविदा
जहान को
-विनोद सिल्ला©