कह कर बदलना (कविता)
कह कर बदलना,
आम बात है जी।
जनसाधारण ही नहीं,
राजनीति में खास है जी।
जो जितना बदलता,
चर्चा में बनता है जी।
झूठ बोलने का चलन,
बहुत बढ़ रहा है जी।
कहना बहुत आसान,
निभाना कठिन है जी।
अब तो सत्ता पूर्व वादा,
जुमले कहलाते हैं जी।
जब मुखिया बोले झूठ,
विश्वास किस पर हो जी।
कौन है हितेषी अपना,
कैसे पहचानें जी।
अब तो रहा नहीं भरोसा,
अपने भीे बदल जाते जी।
पर अपराध जगत में,
वादा निभाते है जी।
विश्वास के चलते ही,
अपराधी संगठित हैं जी।
क्यों न समाज में वादें निभायें,
नई पीढ़ी को सच्चा बनायें जी।
प्रयास बड़े लोगों से हो,
तो सभी अपनायगें जी।
(राजेश कौरव”सुमित्र”)