कहीं तो कुछ जला है।
कहीं तो कुछ जला है।
वर्ना ये धुंआ क्यूं उठा है।।1।।
लौट कर ना आना है।
वक्तें जिंदगी जो बीता है।।2।।
नजरों में बस रहेगा।
गरीबो का जो सपना है।।3।।
बिमार ए इश्क को।
कहीं सुकुन ना मिला है।।4।।
शाख बड़ा है रोयी।
परिन्दा भी उड़ चला है।।5।।
बिन खिले फूलों के।
गुलशन कहां महका है।।6।।
जिसमें ना हो जुदाई।
वो इश्क ही ना हुआ है।।7।।
जख्म दर्दे दिल का।
गुजरते वक्त ने भरा है।।8।।
तुम गए क्या छोड़के।
गमों ने आकर घेरा है।।9।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ