कहीं ढूँँढ़े नहीं मिलती मुहब्बत इस ज़माने में
बता दे ग़र नहीं मुश्किल तुझे मुझको बताने में
जफ़ा तैयार होती है यहाँ किस कारखाने में
नज़र जिस ओर पड़ती है नज़ारा नफ़रतों का है
कहीं ढूँँढ़े नहीं मिलती मुहब्बत इस ज़माने में
भरोसा कम ही होता है कसम जो आपने खाई
हुई आधी है वादे पर गई पूरी बहाने में
हक़ीक़त सामने है सब छुपाकर क्या करोगे तुम
मिला है क्या बहानों से रखा है क्या सताने में
छिपाकर भी नहीं रखना अगर इक़रार है तुमको
यकीं करते हो ग़र दिल से मज़ा है फिर जताने में
सिवा क्या प्यार के है ये दिखा है जो जुनूँ उसका
दवा मुझको खिलाने में कभी मरहम लगाने में
न करना हौसला तुम कम अगर बुझता है इक दीया
न लगती देर कुछ है दूसरा दीया जलाने में
मिली पतवार किस्मत की समुन्दर वक़्त को समझो
करो मेहनत हमेशा ज़ीस्त की कश्ती चलाने में
उसे तू दो क़दम अपने सदा आगे ही पाएगा
नहीं ‘आनन्द है पीछे कभी रिश्ता निभाने में
डॉ आनन्द किशोर