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15 Oct 2022 · 4 min read

कहानी

कहानी
विधा गद्य
15/10/2022
शीर्षक ..असली चेहरा

दीप्ती घर के काम जल्दी जल्दी निबटा रही थी। दीपावली पर काम खतम ही होने पर नहीं आ रहा था। तभी एक फोन काल आया।
अंजान नं. था।कौन हो सकता है?उठाऊँ न उठाऊँ…रिंग बराबर बजे जा रही थी।
“हैलो..।” आखिर रिसीव कर ही लिया फोन
“हैलो दीदी,चरण स्पर्श।”
दीप्ती चक्कर में थी आखिर है कौन।छोटा भाई सदैव प्रणाम करता है।
“भाई,हमने पहिचाना नहीं।कृपया परिचय दीजिए।”
“दीदी ,आपने पहिचाना नहीं?मैं भोपाल से देवेश। एक साल पहले एक आयोजन में मिले थे!”
दीप्ती की नजरों के आगे भोपाल का साहित्यिक आयोजन घूम गया
“ओह भाई, क्षमा करें..पहिचाना नहीं।बतायें कैसे याद किया?”
फिर देवेश ने कहा कि वह उनकी रचनाओं को गवर्नमेंट अनुदान से छपवा सकता है और रायल्टी भी मिलेगी। अगर वो कोई साहित्यिक संस्था खोलती है तो रजिस्ट्रेशन आदि भी करवा देगा।आयोजन करने पर 75%मदद मिलेगी। वह इसी तरह हर तीन चार महीने में आयोजन करता है।
आफर लुभावना था।मन उड़ान भरने को पंख फडफड़ाता उससे पहले ही वह धरती पर आई।
“भाई ,इस पर विचार करूँगी। आभार..।”कह कर फोन बंद कर दिया।
वह जानती थी कि यह सब उसके पति को पसंद नहीं था।
दिल दिमाग की जंग जारी थी।ऊपर से देवेश के फोन उसे उत्साहित कर रहे थे।
अब अक्सर वह भी फोन लगा लेती।साहित्य की चर्चा होती। देवेश सदैव अपनी योजनाओं के बारे में बताता उसे प्रोत्साहित भी करता।
फिर अचानक फोन उठाना ,काल करना बंद कर हो गया।कुछ दिन दीप्ती सोच में रही ..फिर लेखन और घर की जिम्मेदारियों में वह भी भूल गयी।
लगभग दो साल बाद वही नं.।
“हैलो दी,चरण स्पर्श।कैसी हैं?”
“भाई,आप..आपने तो फोन ही उठाना बंद कर दिया था।”
“दी,कुछ विभागीय उलझनें थी।परिवार में भी कुछसमस्यायें थीं।अब थोड़ी.राहत है।”
दीप्ती ने पूछा भी क्या हुआ पर देवेश ने बात टाल दी।
“दीदी,पता लगा है आपने कोई साहित्यिक संस्था खोली है..आप आदेश कीजिए मैं सक्रिय रहूँगा।कहिये तो रजिस्ट्रेशन भी करवा दूँ।बहुत फायदे हैं।”
“भाई ,इस मामले में मुझे जानकारी नहीं।पर कुछ लोगों ने मना किया ।बहुत लफड़े हैं संस्था रजिस्ट्रेशन के..।”
“अच्छा ठीक है। अपनी संस्था में जोड़ लीजिए ।मैं सक्रिय रहूँगा।”,
दीप्ती ने देवेश को संचालक मंडल में जोड़ लिया।कुछ दिन सक्रिय रह के फिर साइलेंट।न फोन रिसीव न कोई बात

दो माह बाद दीप्ती ने फोन कर पूछा भाई ,सब कुशल तो है
बताया कि पापा बीमार थे ..बड़े भाई भी ..और विभागीय उलझन भी
हाल चाल पूछ कर दीप्ती ने फोन बंद कर दिया।
कुछ दिन बाद पिता और भाई के हाल चाल जानने को फोन किया ..सुनकर दुख हुआ कि कुछ समय के अंतर से दोनों ही निकल गये।
दीप्ती सांत्वना दे मौन हो गयी। कुछ दिन बाद माँ के स्वास्थ खराब होने की सूचना ..।
फिर माँ के जाने की खबर ।
दीप्ती ने भी डिस्टर्ब करना उचित न समझा।आखिर इतनी परेशानी होने पर कोई कैसे काम कर सकता है।
फिर भी कभी कभी मानवीय संवेदना के तहत दीप्ती हाल चाल पूछ लेती। कुछ समय बाद वापस आकर काम करने.लगे।
एक दिन पूछा दीदी विपुल को जानती हो ?
दीप्ती के न करने पर उन्होंने जानकारी दी और विपुल को खूब कोसा ,गालियाँ दीं।कि उसने क्या क्या किया था।
दीप्ती ने कहा भाई छोड़ों ,आगे बढ़ो ।
पर विपुल से रोज बात होती देवेश की। एक दिन शंका हुई तो पूछ लिया कि भाई आप तो विपुल से अभी भी बात करते हो ..मुझे तो कुछ और बताया आपने।
अरे नहीं दी,उसकी तो मैं बैंड बजा दूँगा।बहुत कमीना है ।देखो कैसे कैसे संदेश भेजता है मुझे।मैं तो ब्लाक भी कर चुका उसे।
देवेश ने दो तीन स्क्रीनशॉट भेजे ।गलती बस ये की कि तारीख और दिन मिटाना भूल गये।
दीप्ती का माथा ठनका। संदेश में उनकी निकटता साफ दिख रही थी। और किसी योजना पर दोनों काम कर रहे थे जिनमें देवेश 100% भागीदारी दे रहे थे।
दीप्ती ने कहा भी कि आपकी तो बात बंद है न भाई ब्लाक भी किया उसको ।

“हाँ दीदी बहुत नीच इंसान है ..वो.”

“फिर ये स्क्रीनशॉट तो आज सुबह के हीं हैं इनमें तो कहीं ऐसा आभास नहीं हो रहा कि आप उससे नफरत करते हैं?” दीप्ती ने बात काटते हुये कहा

“मुझे आपको सफाई नहीं देना है..।” कह कर फोन बंद कर दिया। दीप्ती उलझन में थी कि आखिर माजरा क्या है कुछ समझ न आ रहा था।
व्हाट्सएप पर ब्लाक ,फोन नं. भी ब्लाक ।कुछ दिन परेशान रही दीप्ती कि देवेश आखिर क्या छिपा रहा था ..।

अचानक दो दिन पहले एक मित्र का फोन आया ,”दीप्ती, तुझे गज़ल सीखनी थी न..नया ग्रुप बना है ..कोई विपुल हैं वहाँ अपनी बहुत सी मित्र जुड़ी हैं।”
दीप्ती ने सहजता से कह दिया जोड़ दे।अगर समझ आया तो रुकूँगी।
पहली फुर्सत में दीप्ती ने ग्रुप देखा ..आदतन सदस्य लिस्ट पर नज़र डाली। देवेश को देखकर सभी बातें याद आ गयीं। महिला समझ कर दीदी का रिश्ता बना कर छल । देवेश का असली चेहरा सामने आ चुका था। उसने तुरंत गज़ल का समूह छोड़ दिया।

मनोरमा जैन पाखी

Language: Hindi
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