*कहां किसी को मुकम्मल जहां मिलता है*
हर कोई छोटी-छोटी
बातों पर तंज कसता है।
ना तेरा है ना मेरा है
फिर भी एक दूजे से क्यूं रस्क रखता है।
तू मुझसे बड़ा ,मैं तुझसे बड़ा
इन बड़प्पन के हालातो से
हर रोज कर्ज तले दबता है।
इसी कशमकश में इंसान
हर रोज मरता है।
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व्यथा ही तू घबराता है,
व्यथा ही तू मचलता है
जब तेरे साथ खुदा है
तो तू क्यों डगमगाता है।
तेरा हाथ जो पकड़ा उसने
,फिर क्यों तू मयखाने जाता है,
इसके घर या उसके घर के
तू क्यों चक्कर लगाता है।
तेरी मंजिल भी पास होगी तेरे,
क्यो बेसब्र हुआ जाता है।
जो ना मिला होगा
उसकी चाहत तो की होगी
इस दरमियां तूने खता भी की होगी
सब छोड़ अब तू
हाले दिल वो खुदा जानता है
कहां किसी को उसका
मुकम्मल जहां मिलता है।