कहाँ हो?
कहाँ हो?
तुझको तन-मन ढूढ़ता,बहुत विकल है आज।
क्या जानें तुम हो कहाँ,हो कर अति नाराज??
नहीं मिलोगे क्या कभी,नहिं होगा दीदार?
क्या मंशा है मित्र जी,रूठ गया क्या प्यार??
जब दिखते हो तुम नहीं,होता हृदय अधीर।
सारे तन में हो सदा,बहुत अधिक ही पीर।।
पीड़ा हरते हो नहीं,बहे नेत्र में नीर।
भूल गए सुनते नहीं,क्यों मेरे जागीर!!
कसम खुदा की हृदय में,उठता गरल गुबार।
चाहत केवल एक तुम,रहे साथ दिलदार।।
तंग न कर जल्दी मिलो,यदि हो सच्चा प्यार।
और अगर य़ह झूठ है,तो कहना बेकार।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।