कहाँ रूठ कर?
कहाँ रूठ कर?
(आल्हा/वीर रस)
कहाँ रूठ कर तुम जाओगे,जहाँ-जहाँ जाओगे यार।
तन मन हरदम साथ रहेगा,सदा रहेगा सुमन सवार।
यह साया अद्भुत अनुपम है,इसमें दैवी शक्ति अपार।
सिर्फ देखता रहता तुझको,तुम्हीं सिर्फ मोहक संसार।
जन्मांतर का उत्तम नाता,रिश्ता गहने का भंडार।
टूट सकेगा कभी न यह मन,खड़ा दिखेगा निश्चित द्वार।
पिंड छुड़ाना कठिन असंभव,करो सदा इसपर इतबार।
कदम मिला कर छाया बनकर,सदा बनेगा छायाकार।
इस गफलत में कभी न रहना,कि यह भागेगा अति दूर।
साथ निभाए प्रेम हर्ष से,रहे चमकता साथी नूर।
तुम भी क्या जानो यह माया,आत्मा का यह वंश महान।
तन मन हृदय आत्म तक विचरण,भ्रमण करे यह सहज सुजान।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।