कहर का मंजर
ये मालूम ना था कि अब तुमसे मिल ना पाएंगे
इस कोरोना की लहर में अपनों से बिछड़ जाएंगे
यह कैसा कहर बरपाया है अंजाना सा दुनिया में
पता ना था किसी को वक्त के पहिए ठहर जाएंगे
प्यासे को पानी ना मिला भूखा खाने को तरस रहा
मौत का भयानक मंजर घर घर में बरस रहा
शाम को जिनसे मिलकर नजरों से गुफ्तगू की थी
ना जाने कैसी रात आई सुबह आंसुओं का सैलाब बहा
घर में हुए कैद सभी कामकाज भी सब बंद हुए
आना-जाना मिलना मिलाना उत्सव सारे बंद हुए
पार्ट1 व पार्ट2 तो कहर बरपा कर चले गए
ना जाने आगे क्या होगा दिमाग सभी के कुन्द हुए
कोई अपनों से गया किसी का अपना चला गया
किसी के आने वाले दिनों का सपना चला गया
घर में जो रुक गया बस वही तो बच पाया है
इन हालातों में कोई बीमारी से कोई भूखा चला गया
वीर कुमार जैन
18 जुलाई 2021