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11 Jun 2024 · 1 min read

कहमुकरी छंद

कहमुकरी छंद

बिन पूछे बतलाता रहता।
ज्ञानचंद बन नाटक करता।
अन्य सभी को निम्न समझता।
रे सखि!शिक्षक? नहिं सखि मूरख।

डींग हांकता चढ बढ़ कर के।
आता खुद ही पैदल चल के।
अपनी कहता और सुनाता।
रे सखी दोस्त?नहिं सखि मूरख।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

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