कश्त…
यादों के कश्त में सुलग कर रह गये,
आँखों का दर्द जुबान पी गये,
जिंदगी की तलब में भटके जो दरबदर,
खुदके पते से भी अंजान रह गये,
अब की जो मंजिले पुकारती हैं,
शोर कानों को झंझोरती हैं,
शौक मुहब्बत का माचिस सा था,
आग जो सुलगी तो पूरा आशियाँ जला गयी…
अब के दाय़रें में रखेंगे दिल के कदम,
पहरों में रखेंगे सुखते आँसू नम,
पतझड़ ही थी बिछड़े साल की मुहब्बत,
सोच कर यह ना अपना बागबान ना उजाडेंगे…
वो शौक से अपनी मुहब्बत औरों पर लुटा दे,
अब के मुहब्बत का नाम लेंगे,
इस लिए के तुम बेवफा निकले,
इस धोखे में अपनी मुहब्बत को,
हर किसी पर अब के ना निलाम करेंगे….
#sapna