कवि प्रदीप और मेरी कोरोना के संदर्भ मे पंक्तिया
पूरे देश मे आज ये क्या हो गया है ।
महामारी के पीङा से सारा अरमा ढह गया है ।
कैसी ये मनहूस घङी है ।
सबकी अपनी आन पड़ी है ।
कोरोना महामारी से आज ।
पूरे विश्व की धुरी घिरी है ।
जाने क्या है होने वाला ।
सबका माथा आज झुका है ।
आजादी का जुलूस रूका है ।
चारो ओर दगा ही दगा है ।
हर चेहरे पर मास्क लगा है ।
आज दुःखी है जनता सारी ।
रोते है लाखो नर -नारी ।
रोते है आंगन गलियारे ।
रोते आज मोहल्ले सारे ।
रोती है सलमा रोती है सीता ।
रोते है कुरान और गीता ।
आज हिमालय चिल्लाता है ।
कहां पुराना वो नाता है ।
डस लिया है पूरे देश को जहरीले नागो ने ।
घर को लगा दी आग घर के चिरागो ने ।
लाखो बार मुसीबत आई ।
इंसानो ने है जान गंवायी ।
पर है सबकी लाज बचाई ।
डाक्टर सब है घबराते ।
रोगी नित है बढते जाते ।
कैसे होगी सुरक्षा इनकी ।
ज्यादा नही मेहमान ये दिनकी ।
निकला न कोई इसका है टीका ।
पुरा जंहा अब लगता है फीका ।
शहर से पैदल ही चल दिए है ।
भूखे सब उपवास किए है ।
मरना सब का लगता ये तय है ।
कैसा ये मौत का भय है ।
घर से न है निकलते कोई ।
लोगो ने है आजादी खोई ।
सूने पड़े बाजार, शहर है ।
अफनाहट सी तो हो रही है ।
श्वासे कही पर खो रही है ।
इटली, चीन ,ईरान और अमेरिका ।
फ्रांस ,ईरान और है क्यूबा ।
सारा देश मौत के शय मे डूबा ।
लाशे सब है बिखरी पड़ी ।
परमाणु बम से भी भयानक जंग छिङा है ।
कोई भी न बच सकता कीङा है ।
सबके दिलो मे तो पीङा है ।
आज सलामत कोई न घर है ।
सबको लूट जाने का डर है ।
हमने अपने वतन को देखा ।
आदमी के पतन को देखा ।
चल रही हे उल्टी हवाए ।
रो रही है आज ये फिजाए ।
कैसा ये खतरे का प्रहर है ।
आज हवाओ मे भी जहर है ।
कही भी देखो बात यही है ।
हाय भयानक रात यही है ।
मौत के शांए मे हर घर है ।
कब होगा किसको खबर है ।
बंद है खिड़की बंद है द्वारे ।
बैठे है सब डर के मारे ।
क्या होगा हम सब बेचारो का ।
क्या होगा हम लाचारो का ।
इनका सबकुछ खो सकता है ।
कोई न रक्षक नजर भी आता ।
हम सब खुद है अपने रक्षक ।
बचने का विश्वास बचा है ।
आशा पर पुरा विश्व टिका है ।
Rj Anand Prajapati & kavi pradeep