कविता
वाह री कुदरत क्या खूब रची मानव की सुसंरचना
कुशाग्र बुद्धि और जीवन से भरी तेरी यह रचना।
तरु विटप वल्लरी वन उपवन है,हरित और घना
दृढ़,विशाल, अडिग पाहन, गिरी, कबसे खड़े हैं।
काटकर पहाड़,मानव रहा आलय और मार्ग बना।
देखो पहुंचा मनु शशि, इंदु पर है,
नहीं रहा दूरी पर कोई शेष ग्रह।
बुद्धि बल से, दिया पर्वतों काम चीर सीना,
पहुंचा हिमालय,एवरेस्ट पर, नहीं ज़रा अनमना।
तोड़ पर्वत बना रहा मनु,नित नव्य राहें
शिखर सफलता का खड़ा है खोल बाहें।
पंथी पथ स्व बना रहा शैल का फोड़ सीना
करती विस्मित राह लगती,ज्यूं खड़ा है सिंह तना।
नैन मूंदे खड़ा क्यों? तू सिंह बतादे
किस शिकार की धाक हैं,तेरे इरादे।
भूल मत वनराज यह,तू पाहन काटकर बना
हरित पहाड़ी से घिरा तू,नहीं ये कोई वन घना।
देख मनु की अनंत प्रबलता और अदम्य साहस
निस गुजरता पास से तेरे,हो पूनो या अमावस।
प्रतीत होता,संबोधित कर रहा,तू गहरी घाटियों को
सुखद, स्वर्गिक नील वर्णी ,अनन्य वादियों को।
देखो, नीलम क्या खूब कलाकृति है मनुष्य महान की
आकृति बदली उजाड़ वन उपवन और काट पाहन की पाषाण, शिला, शैल, प्रस्तर, उपल और खेत खलिहान
तरक्की के नशे में भूला मनुष्यता क्यों ए महान इंसान।
नीलम शर्मा