कविता
मैं तुमसा नजर आऊँ…
रंगों की परम्परा औऱ खुशियों में झूमें
आओ फिर पुरानी गलियों में घूमें..
जहां मैं तुमसा ही नजर आऊँ…
बरसो बाद निभा ले फिर रस्में
तोड़ दें अहम की दीवारें
होने दें आसमां को गुलाल
जहां तुम गुलाब नजर आओ
औऱ…
मैं तुम जैसा नजर आऊं
आज फिर चुरा लाऊं,
तेरे चित्रों की डायरी
कुछ अधूरे चित्रों को
पूरा कर दूं आज के दिन
इन रंगों के सहारे सही
तु मुझमें नजर आये
मैं तुझमे नजर आऊं..।
पंकज शर्मा
पिड़ावा झालावाड़
राजस्थान