कविता
कविता
सागर की गहराई
छुपे हुए हृदय में मेरे भाव फूल,
चुभते हैं उर को मेरे विष शूल।
मिला न तेरे जैसा कोई,
जिसे देख में तुम्हें भुला दूं।
सागर की लहरों सी होती है कविता,
जिसमें समाया भण्डार है रहता।
कविता में भी होती हे,सागर की लहरें,
उफन रहा तूफान,उमड़ घुमड़ के लहरें।
सागर तेरा कोई किनारा नजर नहीं आता,
लहरों का रास्ता ,कहां को हे जाता।
पैमाना ही नहीं कोई जिससे नापा जाये
अनंत हे सागर की गहराई,जिसका हिसाब हो पाये।
हे!सागर तुम्हें मेरा बंदन,
तू शांत हे,तू धीर हे,गंभीर है,
सागर तुमको हे मेरा कोटि-कोटि,
शत, शत,नमन।।
सुषमा सिंह उर्मि