कविता
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सूरज की पहली किरण की स्वर्णिमा,
बिखरी धरा पर सुनहरी लालिमा।
सुखमय हुआ सबेर,
आई सुखमय भोर,
अंधियारा सारा मिट गया
नभचर करते शोर।
दिनकर का हुआ आगमन
बीती काली रात,
देख पल्लवित-पुष्प को
खुश होकर गाना गात।
भोर हूई सूरज की किरण
फैलीं चारों और,
फूलों में भौंरा डोले
गुन गुंजन करे,
पंखुड़ियां हुई भाव विभोर।
सुषमा सिंह *उर्मि,,