कविता
विधा-स्वतंत्र
शीर्षक-मेरे गुलिस्तां के पुष्पों??
मेरे गुलिस्तां के पुष्पों, इक नई बहार बनो तुम।
खुश्बू देश में फैलाओ,विजय का हार बनो तुम।।
मेरे गुलिस्तां के पुष्पों—–
कह दो दुश्मनों से तुम,
डरते नहीं हम तुमसे।
रक्षक हैं इस देश के हम,
जुड़े हैं हम सैनिक दिलसे।।
चुकायेंगे कर्ज सब हम तुम,
वफादार हैं वतन के हम तुम।
मेरे गुलिस्तां के पुष्पों—
कभी नहीं झुकाना सिर,
दुश्मनों के सामने कभी।
वतन की शान कम हो,
करना नहीं वो काम कभी।।
गर्व हर भारतवासी करे,
ऐसा सूरज बनो तुम।
मेरे गुलिस्तां के पुष्पों——-
खुशियां अपनी बांटना,
देश में सबको बराबर।
धर्म चाहे कोई हो,
सम्मान हो सबका बराबर।।
इंसाफ सबका करना तुम,
बनना नेक इंसान तुम,
मेरे गुलिस्तां के पुष्पों ,इक नई बहार बनो तुम।।
सुषमा सिंह उर्मि
कानपुर