कविता
?रचना ?
छोड़ दीजिऐ
जब कुछ समझ में न आऐ
अपने बस में कुछ न रहे सब प्रभु पर
छोड़ दीजिऐ
पथिक को पथ ना मिले
रास्ता भटक जाऐ राही
तब सब प्रभु पर
छोड़ दीजिऐ
हर किसी का जीवन अलग
विचार अलग कद रंग सब अलग
तुलना करना सब प्रभु पर
छोड़ दीजिऐ
जब कोई आपका मान ना करे
उर भाव से सम्मान ना करे
तब अनभिज्ञ समझ कर
छोड दीजिऐ
जब कोई बात ना समझे्
तो समझाना छोड़ दें
नादान समझ गुस्सा करना
छोड़ दीजिऐ
जगत में कोई साथ न दे
और सब दामन छोड़ दें
तब घबराना नहीं तू मानुष
सब प्रभु पर
छोड़ दीजिऐ
सुषमा सिंह