कविता
?प्राकृतिक सुषमा?
धरा के हरित पल्लवित रूप मनोहर,
कहीं बहती हुई झर-झर हैं नदियां,
कहीं झिलमिलाते हैं झीलों के तेवर।
कहीं ऊंचे पहाड़ो पर सफेद बर्फो की चादर,
कहीं पेड़ों की डालियों में शबनम की बूंदे,
फिजां में महकती रहती है केसर।
कश्मीर! भारत की धरा पे स्वर्ग का है मंजर,
तरूवों पर बैठे पक्षियों का कलरव,
करे पल-पल मुग्ध उर को निरंतर।
हिमालय को कहते भारत का ताज,
प्यास बुझाती नदियां हैं भारत की सरताज,
हे!नील गगन तू चादर है संसार का
धरा बिछौना है हम सबका ।
नदियों का बहना,तारों का चमकना
प्रभात का होनाऔर सूर्यास्त होना,
नहीं है किसी भी चमत्कार से कम—
देखते ही बनती हे छटा निराली,
प्राकृतिक धरा की!
पावन धरा की!!!!!!!
सुषमा सिंह *उर्मि,,