कविता
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राम नाम का सुमिरन जिसने किया।
वही तर गया नाम जिसने लिया।।
सत्य हे प्रभु राम हीजान जो भी गया।
छल कपट छोड़ कर उर में रखे दया।।
तुम्हारी कृपा प्रभु जो हैं पाते।
काम सफल सब उसके हो जाते।।
करूणानिधान हमको देना सहारा।
पल-पल में जपती नाम तुम्हारा।।
प्रभु सुमिरन छोड़ जो फंसा जाल में।
राम का नाम जो भी भूला फंस गया काल में।।
विरह की आंधी जब चले लहर से—–
क्ई नौकाएं ढह गई उसके आवेश से!!!!!
सुषमा सिंह *उर्मि,