कविता
??नई नवेली दुल्हन??
ओढ़ कर लाज का घूंघट तुम आना,
नई नवेली दुल्हन हो,तुम सोलह श्रृंगार करके आना,
कि चांद भी शर्मा जाय,देखकर तुम्हारा चेहरा, तुम धरा की चांद बनके आना।
ओढ़ कर लाज का घूंघट तुम आना—-
शर्मिली दुल्हन की तरह, लटों को लहरा कर,
नई चेतना, नव जीवन बन,पायल की झंकार लेके आना,
सालों से था इंतजार तुम्हारे आने का,
नई सुबह, नये वर्ष सी,आज तुम नवेली दुल्हन सी,बहार बनके आना,
ओढ़ कर लाज का घूंघट तुम आना।
निकल पड़ी में छोड़ पिता घर,
आ पहुंची हूं पिया के द्वार,
छूटा मेरा मायका,वो बचपन का प्यार
आ पहुंची ससुराल में, छोड़ भाई बहन का प्यार,
ओढ़ कर लाज का घूंघट तुम आना।
घर के आंगन में खुशियां बरसती रहें,
तुम बरसात की तरह,प्रेम अमृत बरसा देना,मधुर वाणी से तुम अपनी सबको शीतल कर,घर को स्वर्ग बना देना
तुम्हारे स्वागत को सभी ने असंख्य दीप हैं जलाये,
तुम मन का दीप सदा जलाये रहना,
ओढ़ कर लाज का घूंघट तुम आना।।
सुषमा सिंह उर्मि
स्वरचित