कविता
भारत माता की जय बोलो
——————–
अपने मन की गाँठें खोलो।
भारत माता की जय बोलो।
इस मिट्टी में जन्मे हैं हम, इस मिट्टी में मिल जायेंगे।
भारतवासी पैदा होकर, भारतवासी मर जायेंगे।
जीवन पाया है, तब ही तो मज़हब में ढाले जायेंगे।
वैसी ही होंगी मान्यतायें, हम जैसे पाले जायेंगे।
जिस धरती पर हम मिलजुल कर, सदियों से रहते आये हैं।
इसको ना जाने कब से हम, भारत माँ कहते आये हैं।
जब हम ग़ुलाम थे, अंग्रेज़ों के ज़ुल्म सभी तो सहते थे।
तब भी हम सारे ही भारत को, भारत माता कहते थे।
यह बहुत बाद में हुआ, सियासतदानों ने बाँटा हमको।
तू हिन्दू है, तू मुसलमान, का मार दिया चाँटा हमको।
दुनिया के सारे देशों में ही, जन्मभूमि की गरिमा है।
पैदा करने वाली माता से बढ़कर इसकी महिमा है।
पैदा करके जैसे माता, बच्चों को पाला करती है।
सरज़मीं वतन की भी करती परवरिश, संभाला करती है।
जिस मातृभूमि के बिना मेरी, जग में कोई पहचान नहीं।
भारत माता की जय कहना, है गर्व मेरा, अहसान नहीं।
इन सारी बातों को तोलो।
भारत माता की जय बोलो।
—-बृज राज किशोर