मैना
सुहानी शाम है आई l
पिया की याद गहराई ll
सजल होते रहे नैना l
कहीं खोयी रही मैना ll
बड़ा रंगीन था सावन l
सजन की प्रीति मनभावन ll
कभी मुझसे नहीं रूठे l
लगे मुझको नहीं झूठे ll
विपद जब एक दिन आई l
दुखों को साथ में लाई ll
शिकारी जाल फैलाया l
चलाकर तीर हर्षाया ll
हुए पिय तीर से घायल l
बिलखती रह गयी पायल ll
तड़पकर प्राण पिय त्यागे l
कभी फिर वे नहीं जागें ll
उदासी है निकेतन में ll
भरी है वेदना मन में ll
लगे अब बोझ है जीवन l
शिथिल होता रहे तन – मन ll
साई लक्ष्मी गुम्मा ‘शालू ‘
आंध्र प्रदेश
स्वरचित _मौलिक