कविता
तस्वीरें…
गहरे असमंजस से भरा चेहरा
अचानक मुस्कुरा उठता है।
स्माइल प्लीज.. सुनकर
कुछ साफ दिल लोगों को छोड़
हर चेहरा हरा भरा हो उठता है।
और..
निकल आती है तरह तरह की तस्वीरें..
कुछ हँसते चेहरों के बीच, बुझी आँखों की
कुछ जवां नौकरियों के बीच,रिटायर्ड साखों की
अटल पहाड़ों के बीच, मदमस्त झरने की
हुकूमत से लडते,बातों को रखते..
बेरोजगार धरने की..
कुछ बेटे के बर्थ डे पर,माँ की पुरानी साड़ी की
बच्चों की खुशियों में,बढती बेतरतीब दाड़ी की
मिट्टी के घरों में,घरोंदे बनाते….
कच्चे घड़ो की
मिट्टी के लिए, लड़ते सफेदपोश…
बिना सिरो के धड़ो की..
कितनी बेपरवाह होती है तस्वीरें..
कभी एल्बम में खुशी खुशी सज जाती है।
कभी अखबार की सुर्खियां बन,
छा जाती है।
भीड़ में बहुत चलता है बस इनका
ये कभी उतारी जाती है,
कभी खुदबखुद उतर जाती है
काश कि एक एसा निगेहबान भी होता,
जो उतार पाता मन के अंदर के झंझावातों को
बचपन के होस्टल और..
बुढापे की बेबस रातों को
बचा पाता पुरानी हवेली के बचे अवशेष को,
देख पाता,
नामी संतों के बीच सच्चे दरवेश को
बचा पाता, मेलो में बिकते मजहब..और
दिल से उतरते देश को..
ऐसे बेबस हालात में भी…तस्वीरें,
ये तस्वीरें कमाल करती हैं
हर चेहरे पे ज़माल रखती है..
मौज दरिया मे उठे या मन में,
बस चेहरे से सवाल करती है…
….स्माइल प्लीज़…
पंकज शर्मा
पिड़ावा-झालावाड़(राज.