कविता
करें चुगली तेरे नैन सखि री
बीती कैसी तेरी रैन सखि री
क्यूँ री सखि भाग-1
क्यूँ खाती हो भाव सखि री
फूटे मेरे भाग सखि री
कैसे जाऊँ नदिया पारे
टूटी मेरी नाव सखि री
उसने मेरा सब कुछ छीना
दे गया गहरा घाव सखि री
उछल उछल कर लहरें नाचें
गहरा नीला आव सखि री
ज़ालिम ने है सुध बुद्ध छीनी
मिट गया मेरा चाव सखि री
शमशानों की धूल लगा कर
सींचा मैंने सुहाग सखि री
सांप क्या जाने चन्दन महिमा
अपना अपना सुभाव सखि री
मैंने सबका दिल बहलाया
सबने खाया ताव सखि री
टप टप आँसू आँख बहाये
रिस्ते मेरे घाव सखि री
मिल न पाई मैं साजन से
जलूँ विरह की आग सखि री
दिल जले और आँखें भीगें
यह कैसा अनुराग सखि री
उसकी खातिर सब कुछ छोड़ा
उल्टा पड़ गया दाव सखि री
दिल धड़के और आँख फड़के
छज्जे पर है काव सखि री
निराश मेरा वो हो जाये
धुंधला धुंधला खाव सखि री
सुरेश भारद्वाज निराश
धर्मशाला हिप्र