” कविता हमको छोड़ चली “
डॉ लक्ष्मण झा ‘परिमल ”
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हमारे मन में हुआ
कविता को नये
रूपों में सजाएँ
अलंकार के
परिधानों में
उनका श्रृंगार कराएँ!!
बड़े यत्नों से उनके
केश को
परिधानों के अनुरूप
सँवार दिया
माँग में सिंदूर की
रेखाओं से
उनका श्रृंगार किया !!
साहित्यिक शब्दों के
काजल से
उनके नयन
कटीली बनी
लाल लाल
रंगों से हाेंठाें
की लाली उभरी!!
चूड़ामणि, चन्द्रहार
झुमका और
कान में बाली
नाक में नथिया से
अलंकृत कर दिया
कमर में डढकस
पैर में रुनझुन पायलों
को भी हमने
पहना दिया!!
परमार्जित
शब्दकोश से
जडित हमारी
कविता
अपने घूँघट में
छुप गयी
उनको किसी
ने पढ़ा नहीं
देखा नहीं
और पहचाना भी नहीं
हमारी कविता
हमें छोड़ चली गयी!!
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डॉ लक्ष्मण झा ‘परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखंड
भारत