कविता को बख्श दो कारोबार मत बनाओ।
गज़ल
221…2122….221….2122
कविता को बख्श दो कारोबार मत बनाओ।
साहित्य है ये कविता ब्यापार मत बनाओ।
मंचों का दे के लालच पैसे जो ऐंठते हैं,
ये हैं कलम के योधा लाचार मत बनाओ।
माना कि तुम बड़े हो, बैठे हो कर के कब्जा,
कब्जा गलत है इसको अधिकार मत बनाओ।
ऐसा न हो कि तुमको, ये रोग लील जाएं,
अनजाने में भी इसको, तुम प्यार मत बनाओ।
जोड़ा इधर से इसको, उसको उधर से फोड़ा,
पैसे के दम पे केवल, सरकार मत बनाओ।
कविता उपासना है, आराधना कलम की,
कविता को लूटने का हथियार मत बनाओ।
मां वाणी की कृपा है, कविता के जो हैं प्रेमी,
साहित्य की है दुनियां, घरबार मत बनाओ।
…….✍️ सत्य कुमार प्रेमी