*”कल्पवृक्ष”*
“कल्पवृक्ष”
सृष्टिकर्त्ता घर का मुखिया आदर्श पिता बनकर हर फर्ज अदा करता है।
सुख दुःख के अथाह सागर में विशाल हृदय लिये नैया पार करता है।
साक्षी भाव से जीवन पथ प्रदर्शक बन जिम्मेदारियों का बोझ तले दबा रहता है।
चेहरे पर उदासी का नकाब ओढे हर दर्द छिपाकर संघर्षो से जूझते रहता है।
माँ धरती है पिता आसमान में टिमटिमाते तारों को लिए अटूट विश्वास की धड़कन में धड़कता है।
नाते रिश्तों की डोरी में बंधकर दामन थाम कर खुशियों को संजोये रखता है।
संघर्षों से जूझते हुए पारिवारिक वातावरण में संतुलन बनाये रखता है।
सक्षम पुरुषार्थ पुरूष प्रधान बनकर आदर्श परिवार की पहचान बनाता है।
आंखों की अश्रु धारा रोक जिगर को थामे रखता है।
खुद को परेशानियों में जकड़ कर घर परिवारों में अपनों के साथ खुशियाँ ढूंढता फिरता है।
बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की कामना में सुखद स्वप्नों को तलाशता रहता है।
एक मजबूत नींव रखने के लिए विश्वास की ढाल तैयार रखता है ।
कभी कभी चुप्पी सी मौन धारण कर गम्भीर मुद्रा में खोया हुआ सा रहता है ।
अपने जीवन के अनुभवों को पीढी दर पीढ़ी वंशानुगत देते चला आता है।
पिता कल्पवृक्ष छाँव की तरह से है जो आशियाना की नीवं की बुनियाद पर टिकी हुई है।
उनके हाथों से नन्हे कदमों की आहट से लेकर नई पीढ़ियों की फरियाद छिपी हुई है।
ईश्वर की तरह से फरमाइश पूरी करते हुए रब की पहचान होती है।
धरती सा धैर्य रखना आसमान की ऊँचाई शिखर तक पहुंचने की सीढ़ी होती है।
ईश्वर ने माता पिता की प्रतिकृति तस्वीर ऐसी बनाई गई है।
हर सुख दुःख में बच्चों की हर बातों को सहते हुए जीवन जीते हैं।
उस खुदा की जीती जागती प्रतिमा मूर्ति को हम आदर्श पिता याने कल्पवृक्ष कहते हैं।
शशिकला व्यास ✍️??