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11 Jan 2023 · 1 min read

तुझसे मिलकर बिछड़ना क्या दस्तूर था (01)

ग़ज़ल

तुझसे मिलकर बिछड़ना क्या दस्तूर था।
मैं भी मज़बूर थी तू भी मज़बूर था।।

इश्क़ तो था दोनों तरफ़ जहन में ।
यार चेहरे पे कैसा गज़ब नूर था।।

इक इशारा मिला जब खुदा से मुझे ।
पाँव ज़ख्मी थे चलना बहुत दूर था।।

सर्द रातें गुज़ारीं थीं तन्हा सनम।
रूह बेचैन थी दिल भी मज़बूर था।।

क्यूँ भला इन फ़ज़ाओं ने लूटा हमें।
इश्क़ में ‘माही’ तन.मन मेरा चूर था।।

©डॉ० प्रतिभा ‘माही’

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