कलयुग का प्रकोप
कलयुग का प्रकोप
कलयुग तेरा ये क्या प्रकोप ,
बढ़ गया पाप ,बढ़ गया क्रोध ,
ममता विहीन ,ममता के स्रोत ,
बच्चियां गर्भ से हो रही लोप ,
जो मातृप्रेम से बची ,पली
राक्षस उनको रहे दबोच ,
मात पिता सब दुखी आज है ,
औलादों के बिगड़े बोल ,
बाप व्यापारी हो गये आज के ,
बेटे का कर रहे मोल ,
अग्नि जल रही दिलो में सबके ,
नफरत के बीज पनप रहे रोज ,
स्वार्थ के सब बने पुजारी ,
बजा रहे अपने नगाड़े ,अपने ढोल ,
ऋतुए करवट बदल रहीं ,
धधक रहा ये पूरा लोक ,
कुदरत डंडा लिए खड़ी ,
तेज पवन अब रही है डोल ,
पशु पक्षी मारे जा रहे खुले ,
दया धर्म नहीं बचा है शेष ,
नशीली वस्तुएं शौक बन गयी ,
नर स्वयं रहा दुखों का कुआँ खोद ,
कुल मालिक को भूले सब
याद रहा ये झूठा लोक ,
झूठी मान प्रतिष्ठा में फूले ,
भूले अपना घर सतलोक ,
कलयुग तू क्या चाह रहा ?
क्यों ? लिए तराजू रहा है तौल ,
जो समर्थ गुरु के सच्चे बच्चे ,
उन पर तेरा नहीं प्रकोप ,
कलयुग तेरा ये क्या प्रकोप ,
बढ़ गया पाप ,बढ़ गया क्रोध
जय श्री सैनी ‘सायक ‘