कलयुगी दोहावली
18. कलयुगी दोहावली
सॉई इतना दीजिए, चौदह पीढ़ी खाए ।
कोठी ऐसी हो प्रभू करे पड़ोसी हाए ।।
बकरी पाती खात है, ताको मानुष खाए ।
मानुष मानुष खात है, तबहॅू स्वर्ग सिधाए ।।
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े सहमे और सकुचाए ।
क्या जाने किस केस में विद्यार्थी फॅस जाए ।।
जनता करे न चाकरी, नेता करे न काम ।
कोई चारा खा गए, कोई बने सुखराम ||
वृक्ष न देते छाँव अब नदी न देती नीर ।
साधु संत विष घोलते नेता देते पीर ।।
फोर्स फोर्स बोफोर्स सब बरसन से चिल्लाए ।
राजनीति के बादरा, कबहॅू बरस न पाए ।।
घूस करारी काट के बिल्डिंग लई बनाए ।
माली चौकीदार और कुत्ता ही रह पाए ।।
मात पिता का संग अब जोरू संग न भाए ।
चरण सासु के पूजते साली संग लुभाए ||
कूकुर ऐसा पालिए दूध जलेबी खाए ।
आवत देखे चोर को चार कोस भग जाए ।।
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प्रकाश चंद्र , लखनऊ
IRPS (Retd)