कलयुगी दोहावली
साँई इतना दीजिए. चौदह पीढ़ी खाए।
कोठी ऐसी हो प्रभु करे पड़ोसी हाए ।।
बकरी पाती खात है, ताको मानुष खाए।
मानुष मानुष खात है, तबहूँ स्वर्ग सिधाए ।।
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, सहमे और सकुचाए।
क्या जाने किस केस में विद्यार्थी फँस जाए।।
जनता करे न चाकरी, नेता करे न काम।
कोई चारा खा गए, कोई बने सुखराम ।।
वृक्ष न देते छाँव अब, नदी न देती नीर ।
साधु संत विष घोलते, नेता देते पीर ।।
फोर्स फोर्स बोफोर्स सब, बरसन से चिल्लाए ।
राजनीति के बादरा, कबहूँ बरस न पाए।।
घूस करारी काट के, बिल्डिंग लई बनाए ।
माली चौकीदार और कुत्ता ही रह पाए ।।
मात पिता का संग अब, जोरू संग न भाए ।
चरण सासु के पूजते, साली संग लुभाए ।।
कूकुर ऐसा पालिए, दूध जलेबी खाए ।
आवत देखे चोर को चार कोस भग जाए ।।
प्रकाश चंद्र, लखनऊ
(M): 8115979002