कलम बेच दूं , स्याही बेच दूं ,बेच दूं क्या ईमान
कलम बेच दूं , स्याही बेच दूं ,बेच दूं क्या ईमान
हर चीज को पैसे से तोलने निकला है जहान !!
इंसानों का मोल कहां सब बिकने को आतुर……
दफ्तर हो या कोर्ट कचहरी अब गांधी है महान!!
कवि दीपक सरल
कलम बेच दूं , स्याही बेच दूं ,बेच दूं क्या ईमान
हर चीज को पैसे से तोलने निकला है जहान !!
इंसानों का मोल कहां सब बिकने को आतुर……
दफ्तर हो या कोर्ट कचहरी अब गांधी है महान!!
कवि दीपक सरल