” कलम आज ललकार रही “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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उठ जाओ वीर धनुर्धर अब,
कलम आज ललकार रही !
क्यूँ मूक बधिर से लगते हो ,
कविता तुम्हें पुकार रही !!
कौन सुनेगा क्रंदन उनका ,
जो अपने घर में कैद हुए !
अधिकारों को रौंद रौंद कर ,
उनके सुख को छीन लिए !!
व्यथित ह्रदय को कौन सुनेगा ,
आँखें उनकी निहार रही !!
उठ जाओ वीर धनुर्धर अब,
कलम आज ललकार रही !
क्यूँ मूक बधिर से लगते हो ,
कविता तुम्हें पुकार रही !!
लिख डालो उनकी पीड़ा को ,
लाखों बच्चे उनके कहाँ गए ?
जब देश हमारा अपना है ,
तब युवक हमारे कहाँ गए ??
मायें बहनें बंद कमरों में ,
घुटकर अपने आंसू पोछ रही !
उठ जाओ वीर धनुर्धर अब ,
कलम आज ललकार रही !!
क्यूँ मूक बधिर से लगते हो
कविता तुम्हें पुकार रही !!
कब तक इनके अधिकारों ,
को जंजीरों में जकडेंगे ?
कब तक इनके जज्बातों ,
को पदतल से हम कुचलेंगे ?
यह ज्यालामुखी बन सकती है
जनता सब चीत्कार रही !
उठ जाओ वीर धनुर्धर अब ,
कलम आज ललकार रही !
क्यूँ मूक बधिर से लगते हो
कविता तुम्हें पुकार रही !!
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका