* कर-ना मुहब्बत इस जहां में *
कर-ना मुहब्बत इस जहां में
कर-ना मुहब्बत इस जहां में
अज़नबी लोग है इस यहां में
ग़मे उल्फ़त का दम भरते हैं
कहते प्यार को प्यार ही हैं
करते है गुनाह छुपकर ऐसे
तीर लग जाये तो वो तीर है
वरना छायी तीरगी जीवन में
तिलिस्म करते तीरे नजरों से
घायल है आखिर दिल ही है
खेल नजरों का कहे या फिर
यह खेल समय का फेर है
दिल को खोकर ही पाया है
अपना दिल फिर पराया है
ना,कर मुहब्बत इस जहां में
ना कर,मुहब्बत इस जहां में ।।
?मधुप बैरागी