कर्म – पोटली
भौतिक सुख की उच्चाकांक्षा
और अप्राप्य को प्राप्य में
न बदल पाना है असंतोष।
नश्वरता से शाश्वत में जाने की
खुशी का नाम है आत्म संतोष।
अंतिम विदाई में न तन न धन
न साथ होगी तेरे ऐश्वर्य की पोटली
साथ होगी सत्कर्मों की गठरी।
प्राणी जड़ से चैतन्य की ओर
निर्मल कर तू जीवन की पटरी।
सम्यक ज्ञान अर्जित कर मूर्ख
त्याग दे मोह-माया की भूख।
ईश्वर भक्ति का ले संकल्प
न गवांना तू समय व्यर्थ।
क्या आभास जीवन अधिक है
अथवा है बहुत अल्प।
–रंजना माथुर दिनांक 11/11/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना ©