करें क्या वक़्त भी अच्छा नहीं है
जो सोचा है वही होता नहीं है
करें क्या वक़्त भी अच्छा नहीं है
वो तन्हा है मगर रोता नहीं है
हुआ क्या है पता चलता नहीं है
अंधेरों में न जाने ढूँढ़ता क्या
वहाँ जबकी कोई साया नहीं है
ज़ियादा की कभी हसरत नहीं थी
मगर जो चाहिये मिलता नहीं है
उसे छूकर ज़रा इक बार देखो
वो कोमल है मगर दिखता नहीं है
वो इक सागर के जैसे जी रहा है
समुन्दर है मगर खारा नहीं है
सदा देता है ख़ुशियाँ जो जहाँ को
बिना आनन्द वो रहता नहीं है
डॉ आनन्द किशोर