*करवा चौथ*
“राधिका सी प्रतिबिंब लगत चाँद”
????????ये चाँद जरा ठहर जा तेरा मुखड़ा निहार लेती हूँ
शरद पूनम की चाँदनी में स्वप्न लोक की दुनिया बना लेती हूँ।
चंचल मन सा प्रतिबिंब बनाकर कुछ पल यूँ ही गुजार लेती हूँ।
प्रकृति में सुगंधित फूलों से मकरंद चुरा लेती हूं।
चन्द्र किरण से उजली शीतलता लिए मृगतृष्णा में खो जाती हूँ।
ममता की तरुण लपेटे चाँदनी में बहती नदियों सा बह जाती हूँ।
अमृत कलश के समान बूंदो की धारा में निर्मल हो जाती हूँ।
मोती सी चमक ज्योति प्रकाश लिए मल्लिका बन जाती हूँ।
दर्पण में प्रतिबिंब बन चाँदनी सी निखर जाती हूँ।
प्रकृति का यह रूप मनोहारी प्रभु मूरत में बस जाती हूँ।
प्यारी सी राधिका कृष्ण की मूरत संग छबि में ही खो जाती हूँ।
शशिकला व्यास
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