करवाचौथ पुरुषों के लिए
होगी मेरी पेशी,
तो जबाव क्या दूंगा.?
मैंने ता उम्र उसे
अपने लिए भूखा रखा..
मैं सोता रहा,
वो बादलों में उलझी रही,
मैं गला तर करता रहा,
और वो प्यास सहती रही..
भूखा-प्यासा रहकर,
वो मेरी उम्र बढ़ाती रही,
चाँद मानकर मुझे अपना,
मेरे पैरों में अपनी किस्मत आजमाती रही
हर ना इंसाफी की सजा होती है,
यहाँ नहीं तो वहाँ होती है,
प्रेम में बलिदान भी
होता नहीं एक तरफा,
इसलिए तू भी रख करवाचौथ,
नाम लेकर उसका…
तू भी सीख,
भूखा रहना क्या होता है,
पानी हाथ में लेकर,
प्यास सहना क्या होता है..
तेरी गुस्सा सहकर,
तेरे लिए वृत रखना क्या होता है,
तेरी हरबात ऊपर रखकर,
हँसना क्या होता है..
कुछ रहम कर उसपर भी,
ज्यादा नहीं तो इंसानियत पर भी,
कुछ अहम को गिरा अपना,
स्त्री के लिए भी कुछ फर्ज निभा अपना…