कमरें की दीवारें ।
मेरे कमरे की दीवारें अब मुझें
बखूबी पहचान गया है
ये सारी रात मेरे पहरेदारी में
खड़ा ही रहता है मेरे बाजू में
और मैं जाग कर सिर्फ़ और सिर्फ
कमरे के बाहर की दुनिया में
मशगूल हु जो अंधेरा में साफ दिखता भी नही
हम सबका इस रात को सफल बनाने में
बड़ी कोशिश रहती है
तकिए चादर सारे के सारे मुझसे लिपटे है
और इक मेज़ पर कुछ जल रही है
शायद वो मेरी सिगरेट होगी
मेरे कमरे की सारी किताबें
चीख चीख कर अपनी दर्द बयां कर रही
और ये रात सिर्फ़ सन्नाटों से घिरा है
और मैं इनके आगोश में लिपटा पड़ा हु ।
दीवार के बाहर चांद मेरे खिड़की से
मेरे कमरे में आना चाहता है
लेकिन उसे डर है ये दुनिया उसे
बहुत कोसेगी और वो चुप चाप
अंधेरों में अपनी रातें बिताता रहता है ।
और मैं इन रातों में ख़ुद से बाते करता हु
इन दीवारों के पीछे ताकि
दुनिया सुन न सकें ।
– हसीब अनवर