कभी ये नाम से आता कभी बेनाम आता है
मोहब्बत का कोई ख़त जब हमारे नाम आता है
कभी ये नाम से आता कभी बेनाम आता है
मुहब्बत से सदा रहना सुकूँ चैनो-अमन रखना
ख़ुदा का सबकी ख़ातिर ही यही पैग़ाम आता है
कभी इन्साफ़ में उसके नहीं आवाज़ भी होती
भले ही देर हो जाये मगर इतमाम आता है
यही दस्तूरे-दुनिया है रिवायत है ज़माने की
हमेशा पारसा के सर पे ही इल्ज़ाम आता है
जो रहता था रहेगा जो वही रहता है दुनिया में
शुरू होता जो उसका एक दिन इनज़ाम आता है
बुराई से गुनाहों से बुरे कामों से दुनिया में
बता ‘आनन्द’ दुनिया को बुरा अन्जाम आता है
शब्दार्थ:- इतमाम = पूरा, इनज़ाम = अंत
डॉ आनन्द किशोर