कभी भी दिल से हमें तुम भुला न पाओगे
कभी भी दिल से हमें तुम भुला न पाओगे
किसी भी और से हरगिज़ निभा न पाओगे
छुपा के राज़ जो रक्खा बता न पाओगे
हमें न देख सकोगे जता न पाओगे
बुझा दिया है तुम्हीं ने दिया मेरे दिल का
चराग़ अपने भी दिल का जला न पाओगे
मिटा तो देते अगर दूसरे ने हो लिक्खा
जो नाम हमने लिखा वो मिटा न पाओगे
कभी जो तुम भी सुनोगे कमी तुम्हारी भी
कभी किसी की कमी तुम गिना न पाओगे
कभी ग़रीब को देखो कभी ग़रीबी को
नयन में ख़्वाब हंसी तुम सजा न पाओगे
सितम कभी जो अगर पड़ गये तुम्हें सहना
कभी किसी को जहाँ में सता न पाओगे
भले हैं एक से दो यह बड़े बताते हैं
कभी अकेले घरौंदा बना न पाओगे
चले तो आए यहाँ मर्ज़ियाँ तुम्हारी थीं
मगर यूँ छोड़ के ‘आनन्द’ जा न पाओगे
डॉ आनन्द किशोर