कभी तो दर्द में भी मुस्कुराओ
कहा आने को है वादा निभाओ
कभी तो मान आसानी से जाओ
मुहब्बत के गुलों को तुम खिलाओ
मिटाकर नफ़रतें गुलशन सजाओ
कभी गर ग़म मिले सबको हंसाओ
कभी तो दर्द में भी मुस्कुराओ
कभी पूछो तो क्या है हाल मेरा
कभी तो हाल अपना भी सुनाओ
मदद होती नहीं ग़र चुप रहो फिर
न मुफ़लिस का कभी तुम दिल दुखाओ
दुआयें उम्र भर देते रहेंगे
कभी बिछड़े हुये दो दिल मिलाओ
न आते वक़्त से पहले कभी तुम
कभी महफ़िल भी पहले तुम जमाओ
अभी जो अश्क़ बहते रोक लो तुम
परिन्दों को न ऐसे तुम उड़ाओ
ख़बर पहले ही आ जाती यहाँपर
कभी ‘आनन्द’ को चुपचाप लाओ
डॉ आनन्द किशोर