*** ” कभी-कभी…! ” ***
* ” कभी-कभी सोचा करती हूँ मैं…
तेरा-मेरा साथ कब तक है , पता नहीं..!
हम में विकास की नशा इतनी प्रबल है…
कब कम होगा , कुछ पता नहीं..!!
यदि तुम न हो…
हरियाली कौन लायेगा…?
शीतल समीर…
कब अंतर-आकूल मन हर्षायेगा…?
यदि तुम न हो…
हमें स्वच्छ सांस कौन दिलायेगा..?
गर्म-तप्त हवाओं से…
राहगीर को कौन बचायेगा…?
ऑक्सीजन का सिलेंडर लिये…
कब तक जीवन-पथ तय कर पायेगा…?
कभी-कभी सोचा करती हूँ मैं…
तेरा-मेरा साथ कब तक है , कुछ पता नहीं..!
कुल्हाड़ी लिये हाथों में , मानव की…
जज़्बात की इरादा , कुछ पता नहीं…!
यदि तुम न हो…
बरखा रानी कब आएगी ,
कुछ अनुमान नहीं है..!
कोयल कुहूकेगी…
या मोर नाचेगी.. , कुछ पता नहीं..;
उपवन-कानन में , कुछ फूल खिलेंगे..
या भौंरे गुनगुनायेंगे , कुछ पता नहीं..!
मेरी मुस्कुराहट की..
या खिलखिलाहट की दौर..;
कब तक है , कुछ अंदाज़ा नहीं…!!
तुम से कब तक लिपटी रहूँ मैं…
मेरी कानों में , कुछ आहट नहीं..!
चूंकि… विकास से हम…
पलायन वेग की गति भी लांघ चुके हैं..!
चूंकि… विकास से हम…
पलायन वेग की गति भी लांघ चुके हैं..! ”
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* बी पी पटेल *
बिलासपुर ( छ. ग. )
२४ / ०२ / २०२३