” कभी -कभी हम अपनों को भी आहत करते हैं “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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इन यंत्रों का कमाल तो देखिया …फेसबुक के रंगमंच पर एकबार हमारे पाँव क्या जम गए …हम तो ‘अंगद ‘ बन गए ..!….आखिर यह तो हमारा अपना ‘रणक्षेत्र ‘ .है …..हम इसके धनुर्धर हैं ! ……हमें कौन रोक सकता हैं ….?…कौन टोक सकता है ..? …..अपने अस्त्र और शस्त्रों को हम अपने गांडीव में ही रखना जानते हैं ..इसके प्रयोग की कला तो हमने सीखी ही नहीं ..और ना ही स्वतः प्रयत्न ही किया !…… लोगों के अस्त्रों को चुराकर फेसबुक के रणक्षेत्र पर आक्रमण करते रहते हैं …मित्रों की सूची बड़ी लम्बी बन गयी है ! …..हमारे प्रहारों को झेलें अथवा ना झेलें ..या रणक्षेत्र छोड़ भाग जाएँ ..हमें क्या ?..यह फेसबुक के पन्ने जो हमारे हैं ..वो हमारे ही हैं ! ….भले हम विदूषक बनके अपने ही ताल पर नाचते रहें ..सारे दर्शक हमारी अवहेलना ही क्यों न करे ..पर हम नाचेंगे ..गायेंगे ….और ….वेढंग पोस्टों से लोगों को आहत करते रहेंगे …! …मित्र बनना आसान है पर इसके साथ हमें मनोविज्ञानिक विश्लेषक भी बनना होगा ! ……अपने फेसबुक के पन्नो पर ‘भांगड़ा ‘करें …कत्थक नृत्य करें …कोई फर्क नहीं पड़ता .है ,.परंच इसी प्रक्रिया को जब हम massenger और whatsapp पर लगातार दुहराते हैं ..तो हम मनोविज्ञानिक विश्लेषण के आभाव में अपने मित्रों की पसंद को अनदेखी कर देते हैं …हमारे पास ऐसे -ऐसे मांगे हुए अस्त्रों का जखीरा है ..उसे हमारे मित्र सह नहीं पाते ! …. हमने सहस्त्रों मित्रों को messenger और whats app पर जोड़कर रखा है !..पर इन्हीं कारणों से हमारे पोस्टों को पढ़ते नहीं ..सिर्फ उसे मिटा देते हैं ! हम जब इन बातों को समझ नहीं पाते और messenger और whats app में तंग करना प्रारंभ कर देते हैं तो आहत होकर हमें ब्लाक कर देतें हैं !..हमने तो अब सोच रखा है ..अपने ही फेसबुक के टाइम लाइन पर अपना ‘ लोक नृत्य ‘ करेंगे ..लोगों को आहत ना करेंगे !
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखण्ड
भारत