कभी आधा पौन कभी पुरनम, नित नव रूप निखरता है
कभी आधा पौन कभी पुरनम, नित नव रूप निखरता है
कर यौवन श्रृंगार चांद मेरा सजता और संवरता है
काहे करे गुमान रे चंदा …. तू अपनी चांदनिया पे
झील में हमरे आंगन की हर रोज इक चांद उतरता है
– हरवंश ‘हृदय’
कभी आधा पौन कभी पुरनम, नित नव रूप निखरता है
कर यौवन श्रृंगार चांद मेरा सजता और संवरता है
काहे करे गुमान रे चंदा …. तू अपनी चांदनिया पे
झील में हमरे आंगन की हर रोज इक चांद उतरता है
– हरवंश ‘हृदय’