कब बरसोगे बदरा
सूख रही नदियां, झुलस रहे है वन ,
पशु -पक्षी बेचैन, तरस रहे हैं जन।
गरमी का कहर,झेल रहे है सब।
गांव, शहर में बरसोगे बदरा कब।
चुनावी लहर है, निकल रहा है जुलुस,
जनता जनार्दन है, कतार में चापलूस।
रूपये की गर्मी, झेल न पाए गरीब,
अकड़ अधर्मी, नेताओं के बोल है सब।
चक्रव्यूह तोडना,
बहुमत से विजयी बनाना,
मुंह मीठा करके, उल्लू सीधा न करना ।
बरसोगे कब बदरा ,
वोट देना तुम भी जरूर,
मगरूर मत होना
आना लोकतंत्र का त्योहार ।
हरा भरा संसार, अब उजड़ रहा ।
वैशाख शुक्ल मास ,
लागे जेठ दुपहरी,
प्रेमी युगल तड़प रहा ।
कब बरसोगे बदरा ।
श्लोक मौर्या “उमंग ” ✍️✍️✍️✍️