कब निकल गई जिंदगी, नित नई तलाश में
छोड़ कर पल सुहाने, ढूंढ रहा कल
सोच कर पल पुराने, हो रहा विकल
पा न सका शांति, जीवन गया निकल
संतोष बिना सुख के, मिलते नहीं हैं पल
तृष्णा असीम चाहत,पल पल रही बदल
न कल मिला न आज,रह गए हाथ मल
रात दिन लगा रहा, सुख की तलाश में
बंध गए अनंत, इच्छाओं के पाश में
मिल न सकी शांति, खुशियों की आस में
कब निकल गई जिंदगी,नित नई तलाश में
, सुरेश कुमार चतुर्वेदी