कबीर का पैगाम
मिट गई जिनकी गैरत
बिक गया जिनका ज़मीर!
वे क्या समझेंगे भला
तेरा पैग़ाम, ऐ कबीर!!
कातिलों और लूटेरों से
मानवता की उम्मीद क्यों!
कब हुए आम जनता के
पुजारी, सेठ और वज़ीर!!
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