कबले अंधेर होई?
सबेर होई हो
फेर होई हो
देसवा में कबले
अंधेर होई हो…
(1)
कबले रही पतझर
आख़िर बाग़ में
चिरईन के इहवा
बसेर होई हो…
(2)
एक होई धरती
एक होई आसमान
नफ़रत के कबले
डरेर होई हो…
(3)
क़ौम, नस्ल अउरी
मज़हब के नाम पर
आदमी के कबले
अहेर होई हो…
#Geetkar
Shekhar Chandra Mitra
#जनवादीगीत #इंकलाबीशायर